साहित्यसाहित्य

मां के ह्रदय की पीडा

मां का प्यार देखो दुनिया में,समुद्र से भी गहरा है।
समुद्र के जल की थाह अभी तक कोई नहीं ले पाया है,
मां के प्यार की थाह भी अभी तक कोई नहीं ले पाया है।
नौ माह गर्भ में रख कर,दिल जानता है कितना कष्ट उठाया है,
कोई जान न पाया कष्ट सहते,दिल में कितना हर्ष मनाया है।
प्रसव की असह्यï पीडा सहकर देखों नवजीवन पाया है,
बच्चे का चेहरा देख,अपनी पीडा सब भूल जाती है।
अरे वह बच्चे के कल्याण की प्रभु से भीख मांगती है,
आंचल का दूध पिला,ह्रïदय से लगा,मन में हर्षित होती है।
अपने दुख दर्द की चिन्ता नहीं,बच्चे का दुख देख कष्ट मनाती है।
पढा लिखा कर बडा किया दिन रात कितने कष्ट उठाए थे,
शादी की उसकी,नववधु आने पर मंगल गीत गाये थे।
बडा होकर मां को छोड चला,याद में दिन रात आंसू बहाती है
दुखित होती दिन रात पर मन में कटु शब्द नहीं लाती है।
कहती मेरा ख्याल छोड देना तू, तुझे अपना स्वयं ख्याल रखना है,
मां के प्यार का कोई जवाब नहीं,दुनिया समझ ना पायी है।

-राजेन्द्र बाबू गुप्त
प्रधान
आर्यसमाज दयानन्द मार्ग रतलाम।
मो. 9039510709

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